वित्तीय अनुशासन की नई परिभाषा गढ़ने को तैयार भारत : लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला

राष्ट्रीय शिखर
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Om Birla: A new definition of financial discipline

मुंबई/नई दिल्ली (शिखर समाचार)
मुंबई के महाराष्ट्र विधान भवन में सोमवार को देश के संसदीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ा जब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसद की प्राक्कलन समिति की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की प्राक्कलन समितियों के सभापतियों के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस मंच से श्री बिरला ने न केवल वित्तीय अनुशासन के दायरे को विस्तार देने की बात कही, बल्कि शासन को नई पीढ़ी की तकनीक से जोड़ने की वकालत कर स्पष्ट संकेत दे दिए कि अब भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही केवल शब्द नहीं, बल्कि व्यवहारिक प्राथमिकताएं होंगी।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल टूल्स की मदद से पहले से कहीं अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है

अपने संबोधन में श्री बिरला ने कहा कि आज का युग जनता की अपेक्षाओं को पढ़ने और उन्हें शासन प्रणाली में स्थान देने का है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि प्राक्कलन समितियाँ अब केवल बजटीय व्यय की निगरानी भर नहीं, बल्कि व्यापक लोकहित से जुड़ी संस्थाएँ हैं, जिन्हें डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल टूल्स की मदद से पहले से कहीं अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि समिति की शक्ति केवल पूछताछ तक सीमित नहीं, बल्कि वह शासन व्यवस्था को नीति, खर्च और क्रियान्वयन के स्तर पर नई दिशा दे सकती है।

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि विगत दशकों में समिति ने रेलवे की क्षमता, सार्वजनिक उपक्रमों की कार्यक्षमता, सचिवालयों के पुनर्गठन और गंगा पुनर्जीवन जैसे मुद्दों पर अपने सुझावों से बड़े बदलावों की नींव रखी है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि समिति की 90 से 95 प्रतिशत सिफारिशें सरकारों द्वारा स्वीकार की गई हैं, जो यह साबित करती हैं कि यह संस्था केवल विश्लेषण नहीं, बल्कि समाधान का जरिया बन चुकी है।

उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि शासन में तेजी से हो रहे तकनीकी बदलावों

उन्होंने राज्यों की विधानसभाओं में प्राक्कलन समितियों की भूमिका को और अधिक प्रभावशाली बनाए जाने की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि यदि केंद्र और राज्य स्तर पर समितियाँ आपस में संवाद बनाएं, तो वित्तीय अनुशासन के नए प्रतिमान गढ़े जा सकते हैं। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि शासन में तेजी से हो रहे तकनीकी बदलावों के बीच पारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए समितियों को नई सोच और नए औजारों से लैस करना अनिवार्य है।

सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार, विधान सभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर, विधान परिषद के सभापति राम शिंदे, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सहित अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। श्री बिरला ने इस अवसर पर संसद की प्राक्कलन समिति की प्लेटिनम जयंती पर आधारित स्मारिका का भी लोकार्पण किया।

इस दो दिवसीय सम्मेलन का विषय प्रशासन में दक्षता और मितव्ययिता सुनिश्चित करने के लिए

इस दो दिवसीय सम्मेलन का विषय प्रशासन में दक्षता और मितव्ययिता सुनिश्चित करने के लिए बजट प्राक्कलनों की प्रभावी निगरानी और समीक्षा में प्राक्कलन समिति की भूमिका रखा गया है, जिस पर देश भर से आए प्राक्कलन समितियों के सभापति और सदस्य गहन मंथन करेंगे। श्री बिरला ने विश्वास जताया कि इस सम्मेलन से उभरने वाली रणनीतियाँ न केवल समितियों को अधिक सक्रिय और तकनीकी रूप से सशक्त बनाएंगी, बल्कि शासन को जन-केन्द्रित बनाने में भी निर्णायक भूमिका निभाएंगी।

उन्होंने अपने समापन वक्तव्य में लोकतंत्र की आत्मा जवाबदेही की प्रासंगिकता दोहराई और कहा कि यह सम्मेलन अतीत का उत्सव नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने का मंच है। नवाचार, सहयोग और प्रतिबद्धता ही आगे का रास्ता तय करेंगे, जिसमें समिति की भूमिका और अधिक निर्णायक होगी।

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