ग्रेटर नोएडा (शिखर समाचार)। उत्तर प्रदेश का बिसरख गाँव एक ऐतिहासिक गाँव है। जो की वर्तमान में बिसरख धाम से प्रचलित हैं बिसरख भारत के अन्य तीर्थ स्थलों की तरह ही तीर्थ स्थल है इसका वर्णन गीता प्रेस की प्राचीन पुस्तक तीर्थांक में वर्णित है पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिसरख गाँव की चर्चा हर साल दशहरा के अवसर पर जरूर होती है। दशहरा के अवसर पर बिसरख की चर्चा होने का विशेष कारण यह है कि बिसरख गाँव में रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता है।
पूरे देश में दशहरा के पर्व पर जब रावण के पुतले जलाए जाते हैं तो उत्तर प्रदेश के बिसरख गाँव में शोक मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश के बिसरख गाँव में रहने वाले सभी नागरिक दशहरे के दिन रावण का पुतला दहन करने को अशुभ मानते हैं ।
क्योकि यहाँ के निवासी रावण को अपना पूर्वज मानते हैं
रावण के गाँव के रूप में प्रसिद्ध है बिसरख गाँव रामायण के चर्चित चरित्र रावण का गांव स्थापित है। रावण के गांव का वर्तमान नाम बिसरख धाम है। बिसरख गांव को बिसरख धाम का नाम देने वाले पूज्य श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर आचार्य अशोकानंद जी महाराज पीठाधीश्वर बिसरख धाम ने बताया की बिसरख गांव का जिक्र वेद पुराणों में भी मिलता है। बिसरख गांव का पौराणिक नाम रावण के पिता विश्रावा के नाम पर विश्श्रेवा था। यह भी कहा जाता है कि बिसरख गांव में ही रावण का जन्म हुआ था। इसी कारण से बिसरख गांव को रावण की जन्म स्थली कहा जाता है।
तीर्थ स्थल बिसरख धाम की परंपरा यहाँ नहीं किया जाता रामलीला का मंचन पिछले 100 वर्षों से नहीं हुआ रामलीला का आयोजन ।
बिसरख धाम की अनोखी परंपरा: रावण पूजते हैं यहां के लोग, नहीं होता दशहरे पर पुतला दहन
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बिसरख धाम की परंपरा पूरे भारत की परंपरा से अलग है। पूरे भारत तथा उत्तर प्रदेश में हर साल दशहरे के मौके पर रावण का पुतले जलाये जाते हैं। बिसरख एक ऐसा गांव है जहां कभी भी रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है।बिसरख गांव में रहने वाले लोग रावण की पूजा करते हैं। यहां के रहने वाले ज्यादातर नागरिक रावण को अपना पूर्वज मानकर रावण को अपना आदर्श भी मानते हैं। बिसरख गांव में पुरातन समय से स्थापित भगवान शिव के मंदिर को रावण के पिता द्वारा स्थापित किया हुआ मंदिर मानते हैं।
इस अवसर बिसरख धाम के पीठाधीश्वर आचार्य अशोकानंद जी महाराज ने बताया की सनातन धर्म के अनुसार किसी भी व्यक्ति का दाहसंस्कार जीवन में केवल एक ही किया जा सकता है बार बार नहीं ।
सनातन धर्म में बाँस का जलाना अशुभ माना जाता है और रावण के पुतले में अधिकतर बाँस का ही प्रयोग होता है और जो लोग रावण को जलाते हैं उनके अंदर कोई शक्ति नहीं है की वो रावण को जला सके ख़ुद उनके अंदर के रावण को नहीं जला सकते तो रावण को क्या जला पाएंगे ।
रावण एक अपराजित योद्धा है और आज भी लोग रावण का अनुसरण करते है ।
