हापुड़ (शिखर समाचार) पढ़ाई का दबाव बच्चों के लिए किस हद तक बोझ बन जाता है, इसका उदाहरण उस वक्त देखने को मिला जब दिल्ली के एक स्कूल में नौवीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्र ने सीधे महिला थाना मिलाने की कोशिश की। मगर कॉल गलती से हापुड़ महिला थाने पर जा पहुंचा। फोन रिसीव करने वाली थाना प्रभारी निरीक्षक अरूणा राय को जैसे ही बच्चे की चिंता का पता चला, उन्होंने कॉल काटने के बजाय धैर्य और ममता से भरी बातचीत शुरू की, जिसने बच्चे का नजरिया ही बदल डाला।
नन्हे अभय का मासूम सवाल और अरूणा राय का संवेदनशील जवाब—पढ़ाई और भरोसे की अनमोल सीख
कॉल पर मौजूद नन्हें छात्र ने अपना नाम अभय बताते हुए संकोच से भरा सवाल किया कि क्या पुलिस उन बच्चों को पकड़कर ले जाती है जो अपने माता-पिता की बात नहीं मानते? इस भोलेपन भरे प्रश्न को सुनकर अरूणा राय ने बेहद नरमी से समझाया कि पुलिस बच्चों को पकड़ने नहीं, बल्कि उनकी मदद करने के लिए होती है। उन्होंने कहा कि बच्चे माता-पिता की बात मानें, मन लगाकर पढ़ाई करें और अपने भविष्य पर ध्यान दें।
गुफ्तगू के दौरान अभय ने बताया कि उसके पिता दिल्ली में जज और मां डॉक्टर हैं। वह भी डॉक्टर बनना चाहता है, मगर पढ़ाई न कर पाने और सख्त सज़ा मिलने से उसका मन खिन्न हो जाता है। उसने खुलकर बताया कि उसकी टीचर पढ़ाई याद न करने पर उसे ‘मुर्गा’ बना देती हैं, जिससे वह बेहद अपमानित महसूस करता है और दोस्त भी चिढ़ाते हैं। इस पर अरूणा राय ने उसे भरोसा दिलाया कि शिक्षक से इस बारे में बातचीत करेंगे और उसे हतोत्साहित नहीं होने देंगे।
महिला थाना प्रभारी ने दिखाया संवेदनशील नेतृत्व, बच्चे की समस्याओं को समझकर दी नई उम्मीद
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महिला थाना प्रभारी ने न केवल उसे पढ़ाई के महत्व को समझाया बल्कि यह भी कहा कि परिवार को चाहिए कि बच्चों को समय दें, उनकी छोटी-छोटी दिक्कतें समझें और समय-समय पर उनका मार्गदर्शन करें। उन्होंने यह भी माना कि भले ही यह मामला दिल्ली से जुड़ा था, मगर एक परेशान छात्र की आवाज़ सुनना और उसे सहारा देना उनका कर्तव्य था।
अभय ने बातचीत खत्म होने से पहले माना कि अब वह पढ़ाई के लिए नया उत्साह महसूस कर रहा है और अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत करेगा। यह घटना यह संदेश देती है कि कभी-कभी पुलिस की भूमिका कानून-व्यवस्था से कहीं आगे बढ़कर भी होती है जहां इंसानियत और संवेदना किसी बच्चे के जीवन में नया उजाला भर देती है।