मनोज टिबड़ेवाल आकाश
नई दिल्ली (शिखर समाचार) रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय सम्मेलन में स्पष्ट किया कि युद्ध की परिभाषा बदल चुकी है। अब भविष्य के युद्ध केवल शक्ति के बल पर नहीं, बल्कि एल्गोरिदम, ऑटोनॉमस सिस्टम और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) पर निर्भर होंगे। उन्होंने कहा कि भारत हर आधुनिक और तकनीक-आधारित चुनौती से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऑपरेशन सिंदूर में हमने अपनी ताकत और तकनीकी दक्षता का परिचय देखा।
रक्षा नवाचार संवाद में राजनाथ सिंह का संबोधन: ‘रक्षा केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि राष्ट्र का साझा कर्तव्य है
राजनाथ सिंह ने विज्ञान भवन नई दिल्ली में आयोजित रक्षा नवाचार संवाद: आईडेक्स स्टार्टअप्स के साथ परस्पर संवाद’ के उद्घाटन अवसर पर यह बातें कही। उन्होंने कहा कि रक्षा और सुरक्षा केवल सरकार या किसी संस्था की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह पूरे राष्ट्र का साझा कर्तव्य है। उन्होंने नवप्रवर्तकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमें केवल अनुयायी नहीं बनना है, बल्कि विश्व के लिए मानक और नवप्रवर्तन के सृजक बनना है।
रक्षा मंत्री ने भविष्य की तकनीक पर भी प्रकाश डाला। उनके अनुसार, ड्रोन, एंटी-ड्रोन सिस्टम, क्वांटम कंप्यूटिंग और निर्देशित-ऊर्जा हथियार आने वाले समय में युद्ध के स्वरूप को तय करेंगे। उन्होंने स्टार्टअप्स और शोधकर्ताओं से आग्रह किया कि वे मौजूदा समाधानों से आगे सोचें और युद्ध की नई परिभाषा रचने वाली प्रौद्योगिकियों का विकास करें।
रक्षा क्षेत्र में बड़े आर्थिक बदलाव: राजनाथ सिंह ने आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते 1.2 लाख करोड़ रुपये के कदम का किया उल्लेख
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उन्होंने देश के रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में किए गए आर्थिक बदलाव का भी उल्लेख किया। 2021-22 में घरेलू स्रोतों से रक्षा पूंजी अधिग्रहण 74,000 करोड़ रुपये था, जो 2024-25 में बढ़कर 1.2 लाख करोड़ रुपये हो गया है। यह केवल आंकड़ों का परिवर्तन नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की मानसिकता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी, थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी, वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह, सचिव (रक्षा उत्पादन) संजीव कुमार, डीआरडीओ अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत और केंद्र तथा राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का उद्देश्य देश में रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देना और सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को इस क्षेत्र में जागरूक करना था।