देहरादून (शिखर समाचार) उत्तराखंड की ऊबड़-खाबड़ पर्वतीय घाटियों में भेड़ों से मिलने वाली ऊन अब न सिर्फ देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी अपनी खास पहचान बनाने की ओर अग्रसर है। इस दिशा में सबसे अहम पहल की है राज्य के हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास परिषद के राज्यमंत्री वीरेन्द्र दत्त सेमवाल ने, जिन्होंने हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भेंट कर ऊन और हस्तशिल्प उद्योग की स्थिति पर विस्तृत चर्चा की और समाधान के ठोस सुझाव भी दिए।
श्री सेमवाल जो खुद टेक्सटाइल इंजीनियर और पूर्व में केंद्र सरकार के कपड़ा मंत्रालय में सलाहकार भी रह चुके हैं, ने कहा कि उत्तराखंड की ऊन को अब हिमालयी हर्बल ऊन के रूप में एक विशिष्ट पहचान दिलाने की दिशा में कार्य शुरू किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि हमारे प्रदेश की भेड़ें प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर जड़ी-बूटियों वाले वातावरण में पलती हैं, जिससे उनकी ऊन न केवल गर्म होती है, बल्कि उसमें औषधीय विशेषताएं भी मौजूद होती हैं। इसी विशेषता को आधार बनाकर इस ऊन को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में ‘हर्बल प्रोडक्ट’ की तरह प्रस्तुत किया जाएगा।
स्पष्ट शब्दों में कहा जब आज के दौर में घर का कचरा तक बेचा जा सकता है
भेड़पालकों की दुर्दशा पर चिंता जताते हुए राज्यमंत्री ने कहा कि कई जिलों में भ्रमण के दौरान उन्होंने स्वयं देखा कि ऊन की उचित कीमत न मिलने के कारण भेड़पालक उसे जंगलों में फेंकने को मजबूर हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा जब आज के दौर में घर का कचरा तक बेचा जा सकता है, तो उत्तराखंड की जैविक, कीमती ऊन का इस तरह बर्बाद होना बेहद अफसोसनाक है।
राज्यमंत्री ने बताया कि पिछले तीन महीनों से वे प्रदेश के हर ज़िले में जाकर स्थानीय खादी, हथकरघा और हस्तशिल्प केंद्रों का निरीक्षण कर रहे हैं। उन्हें यह देखकर हैरानी हुई कि लाखों रुपये की मशीनें महज मरम्मत न होने की वजह से बंद पड़ी हैं और ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले कारीगरों को मूलभूत संसाधनों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
ध्यान में रखते हुए सरकार न केवल विपणन नेटवर्क को सशक्त करने जा रही है
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि स्थानीय उत्पादों को बाज़ार से सीधे जोड़ना बेहद जरूरी है। कई जिलों में पारंपरिक कारीगरों के पास शानदार उत्पाद तो हैं, लेकिन उन्हें बाज़ार और मंच नहीं मिल पा रहा। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार न केवल विपणन नेटवर्क को सशक्त करने जा रही है, बल्कि राज्य के 13 ज़िलों में नए हथकरघा और हस्तशिल्प केंद्रों की स्थापना की योजना भी तेजी से आगे बढ़ रही है।
इसके साथ ही पारंपरिक डिज़ाइनों को आधुनिक बाज़ार की मांग के अनुरूप नया रूप देने के लिए डिज़ाइन डेवलपमेंट योजनाएं तैयार की जा रही हैं, जिससे उत्तराखंड की शिल्पकला को न केवल पहचान मिले, बल्कि इसका सीधा लाभ कारीगरों को आर्थिक रूप से भी प्राप्त हो।
राज्यमंत्री सेमवाल ने यह भी कहा कि उत्तराखंड सरकार लोकल टू ग्लोबल विज़न
राज्यमंत्री सेमवाल ने यह भी कहा कि उत्तराखंड सरकार लोकल टू ग्लोबल विज़न के तहत राज्य की सांस्कृतिक और जैविक धरोहर को विश्वपटल पर लाने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारा उद्देश्य सिर्फ योजनाएं बनाना नहीं, बल्कि पहाड़ के अंतिम व्यक्ति तक उसका लाभ पहुंचाना है।
हिमालय की गोद में पली-बढ़ी यह ऊन, अब ‘हर्बल ब्रांड’ के रूप में दुनिया में अपनी छाप छोड़ेगी और उत्तराखंड के ग्रामीण समाज को एक नई आर्थिक ताकत प्रदान करेगा, यह वादा अब सिर्फ कागजों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि धरातल पर दिखाई देगा।