काली चिकनी मिट्टी से बनी अनोखी गणेश प्रतिमा, श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा आकर्षण

Rashtriya Shikhar
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Unique Ganesha Idol Made of Black Smooth Clay Becomes a Center of Devotion and Attraction for Devotees IMAGE CREDIT TO Manish Goyal

मुरादनगर (शिखर समाचार)। गणेश उत्सव की रौनक के बीच विजय मंडी निवासी मनीष गोयल द्वारा निर्मित भगवान गणेश की अनूठी प्रतिमा हर किसी की नजरें अपनी ओर खींच रही है। खास बात यह है कि यह प्रतिमा काली चिकनी मिट्टी से हाथों से गढ़ी गई है, इसमें किसी भी प्रकार के सांचे का प्रयोग नहीं हुआ है। कला और आस्था के इस संगम को मनीष गोयल लगातार पिछले बारह वर्षों से निभा रहे हैं और अब यह परंपरा लोगों के बीच प्रेरणा का कारण भी बन गई है।

त्रिशूलधारी गणेश प्रतिमा: भक्ति, शक्ति और करुणा का दिव्य संगम

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मनीष गोयल ने बताया कि इस वर्ष की प्रतिमा में भगवान गणेश एक हाथ में त्रिशूल धारण किए हुए हैं जबकि दूसरे हाथ से भक्तों को आशीर्वाद प्रदान कर रहे हैं। उनका यह स्वरूप केवल भक्ति और आस्था का प्रतीक ही नहीं, बल्कि ज्ञान, शक्ति और करुणा का संदेश भी देता है। प्रतिमा को जब सजावट और रंग-रोगन से अलंकृत किया गया तो उसका सौंदर्य और निखर गया, जिससे श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे।

उन्होंने कहा कि प्लास्टर ऑफ पेरिस और रासायनिक रंगों से बनने वाली मूर्तियाँ पर्यावरण को हानि पहुँचाने के साथ-साथ विसर्जन के बाद अपवित्रता का भी कारण बनती हैं। इसी कारण उन्होंने एनजीटी के आदेशों को ध्यान में रखते हुए पूरी तरह इको-फ्रेंडली प्रतिमा बनाने का निर्णय लिया। मिट्टी से निर्मित यह मूर्ति आसानी से जल में विलीन होकर पर्यावरण को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचाती।

हाथों से गढ़ी आस्था: परिवार संग गूंजती श्रद्धा और संस्कृति की परंपरा

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मनीष गोयल का मानना है कि मूर्ति निर्माण केवल कला का प्रदर्शन नहीं, बल्कि गहरी आस्था की अभिव्यक्ति है। बिना सांचे के केवल हाथों से तैयार की गई प्रतिमा उन्हें आत्मिक संतोष प्रदान करती है और इसी कारण प्रतिमा सजीव प्रतीत होती है। इस कार्य में उनके परिवार के सदस्य भी पूरे उत्साह के साथ सहयोग करते हैं, जिससे यह परंपरा केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे परिवार की आस्था और संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है।

गणेश उत्सव पर इस तरह की पर्यावरण हितैषी पहल न सिर्फ लोगों को प्रेरित कर रही है, बल्कि यह भी संदेश देती है कि श्रद्धा और प्रकृति दोनों का सम्मान साथ-साथ संभव है।

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