ग्रेटर नोएडा (शिखर समाचार)। शारदा विश्वविद्यालय में गुरुवार का दिन छात्रों के लिए बेहद प्रेरणादायक रहा। यहां स्कूल ऑफ बिजनेस स्टडीज के बीबीए और एमबीए के विद्यार्थियों के लिए डब्बावाला मैनेजमेंट लेक्चर का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुंबई डब्बावाला टीम से जुड़े सुबोध सांगले और उल्लास भाऊ ने शिरकत की और विद्यार्थियों को बताया कि कैसे सीमित संसाधनों, साधारण पढ़ाई और अनुशासन के बल पर डब्बावाला सिस्टम आज दुनियाभर में मिसाल बना हुआ है।
लगभग 1500 छात्रों ने लिया हिस्सा, विश्वविद्यालय में हुआ एचआर क्लब का शुभारंभ; मुंबई डब्बावालों की कार्यशैली से मिली प्रेरणा
लेक्चर में करीब 1500 छात्रों की मौजूदगी रही। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के एचआर क्लब का भी शुभारंभ किया गया। मुंबई डब्बावाला की कार्यप्रणाली के बारे में बताते हुए वक्ताओं ने साझा किया कि रोजाना लगभग 5 हजार लोग मिलकर दो लाख से अधिक टिफिन मुंबईकरों के घर से दफ्तर तक पहुंचाते हैं। खास बात यह कि इन डब्बावालों में अधिकांश की शिक्षा सिर्फ आठवीं तक है, लेकिन फिर भी 99.99 प्रतिशत शुद्धता के साथ काम पूरा होता है।
सुबोध सांगले ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि डब्बावाला प्रणाली का इतिहास 1890 से शुरू हुआ, जब महज 40 टिफिन से यह सफर आरंभ हुआ था। आज यह दो लाख टिफिन तक पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि हमारे सिस्टम की असली ताकत है अनुशासन, ईमानदारी और काम के प्रति समर्पण। ग्राहक हमारे लिए राजा है और उसे संतुष्ट करना ही सबसे बड़ा लक्ष्य है। हम कभी हड़ताल पर नहीं गए और रोजाना तीन घंटे के भीतर भोजन घर से दफ्तर तक पहुंचाना सुनिश्चित करते हैं।
मुंबई डब्बावालों का रहस्य: कोडिंग सिस्टम और समयबद्धता से संभव होता है प्रभावशाली टिफिन डिलीवरी नेटवर्क
उन्होंने यह भी बताया कि डब्बा सिस्टम पूरी तरह से कोडिंग पद्धति पर आधारित है। रोजाना 60 से 70 किलोमीटर की यात्रा कर साइकिल और मुंबई लोकल ट्रेनों की मदद से टिफिन पहुंचाए जाते हैं। वर्तमान समय में तकनीक का सहारा भी लिया जा रहा है, लेकिन काम का मूल मंत्र वही है समयबद्धता और भरोसा।
प्रो चांसलर वाई.के. गुप्ता ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि डब्बावाला प्रबंधन प्रणाली पिछले 135 वर्षों से निरंतर सफलता की कहानी लिख रही है। देश और विदेश की तमाम नामी-गिरामी यूनिवर्सिटियां इस सिस्टम पर केस स्टडी कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि सफलता पाने के लिए जरूरी नहीं कि आप बड़े शिक्षित हों, असली मायने मेहनत, लगन और ईमानदारी के हैं।

इस मौके पर प्रो वाइस चांसलर परमानंद, डॉ. राजीव गुप्ता, डॉ. देबाशीष मलिक, डॉ. निखिल कुलश्रेष्ठ, डॉ. रचना बंसल, डॉ. रुचि जैन और डॉ. श्वेता दीक्षित सहित विभिन्न विभागाध्यक्ष भी मौजूद रहे।