भोपाल (शिखर समाचार) माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के वार्षिक सत्रारंभ कार्यक्रम अभ्युदय का दूसरा दिन ज्ञान और अनुभवों की बहुरंगी छवियों से सराबोर रहा। प्रख्यात पत्रकार, लेखक, उद्घोषक, जनसंपर्क विशेषज्ञ और संस्कृति कर्मियों ने मंच साझा कर बदलते मीडिया परिदृश्य पर विद्यार्थियों से संवाद किया।
एआई के युग में भी इंसानी संवेदना और हाइपर लोकल रिपोर्टिंग बनेगी पत्रकारिता की असली ताकत
दिन की शुरुआत वरिष्ठ पत्रकार यशवंत व्यास के व्याख्यान से हुई। विषय था एआई के दौर में प्रिंट मीडिया। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पत्रकारिता का विकल्प नहीं बल्कि सहयोगी शक्ति है। एआई एक अच्छा सेवक हो सकता है, लेकिन इंसानी ईमानदारी और संवेदनशीलता का कोई विकल्प नहीं। श्री व्यास के मुताबिक आने वाले समय में हाइपर लोकल रिपोर्टिंग की अहमियत बढ़ेगी और फील्ड पत्रकारों के लिए अवसर भी ज्यादा पैदा होंगे। उन्होंने विद्यार्थियों को समझाया कि तकनीक का दबदबा चाहे जितना बढ़े, किंतु विश्वसनीयता, संवेदना और भाषा की गहराई जैसी मानवीय विशेषताएँ पत्रकारिता की असली पूँजी बनी रहेंगी।
कार्यक्रम में कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि प्रिंट पत्रकारिता की परंपरा अत्यंत विशिष्ट रही है। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं ने देश में न केवल मानदंड गढ़े बल्कि कई पीढ़ियों को दिशा भी दी। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए विद्यार्थियों को प्रेरित किया कि वे इस परंपरा को आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाएँ।
शब्दों की शक्ति: आवाज़ के जादूगर कमल शर्मा ने सुनने और भाषा की कला पर दिया मंत्र
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इसके बाद प्रसिद्ध रेडियो उद्घोषक कमल शर्मा ने आवाज़ की दुनिया विषय पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि शब्द कभी बम की तरह असर डालते हैं तो कभी मरहम बनकर दिल को सुकून देते हैं। एक सफल उद्घोषक के लिए सुनने की आदत और भाषा पर पकड़ जरूरी है। शब्द ब्रह्म हैं और उनकी प्राण प्रतिष्ठा वाणी से होती है।
वरिष्ठ पत्रकार और कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने संवाद कौशल पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भाषा आने से पहले ध्वनियाँ थीं और इन्हीं ध्वनियों से शब्द बने। शब्द स्मृति में ठहर जाते हैं, इसलिए अच्छे संवाद के लिए अच्छे शब्द और निरंतर पठन आवश्यक है।
भाषा, संस्कृति और डिजिटल युग में जनसंपर्क: पत्रकारिता की नई दिशाएं और भारतीय ज्ञान की वैश्विक भूमिका
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एक अन्य सत्र में पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर ने पत्रकारिता, साहित्य और संस्कृति पर बोलते हुए कहा कि भाषा पत्रकार का सबसे बड़ा औजार है। तकनीक पर अत्यधिक निर्भरता पत्रकारिता के लिए सही नहीं है। उन्होंने पत्रकारिता में लोकमंगल की भावना को प्रमुख बताया। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली के सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा इतनी समृद्ध है कि वह पूरी दुनिया को दिशा दे सकती है। यह युग मोबाइल का नहीं, भारत का युग है।
डिजिटल दौर में विज्ञापन और जनसंपर्क की रणनीतियों पर डॉ. समीर कपूर ने कहा कि इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के साथ नए आयाम जुड़ रहे हैं। बदलती तकनीकों और बाजार की बारीक समझ जनसंपर्क विशेषज्ञों के लिए अनिवार्य हो गई है।
पत्रिका विमोचन एवं मेधावी छात्राओं को पुरस्कार प्रदान, पूर्व छात्राओं ने अनुभव साझा किया
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कार्यक्रम के दौरान पत्रकारिता विभाग की पत्रिका विकल्प और जनसंचार विभाग की पत्रिका पहल का विमोचन हुआ। विश्वविद्यालय की मेधावी छात्राओं को पंडित रामेश्वर दयाल स्मृति पुरस्कार तथा स्व. अंबा प्रसाद स्मृति पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। इस अवसर पर पूर्व छात्राओं प्रियंका दूबे, सोनल पटेरिया, डॉ. शिवा श्रीवास्तव और रागेश्री गांगुली ने अपने अनुभव साझा किए।
सत्रों का संचालन लोकेंद्र सिंह राजपूत, डॉ. गरिमा पटेल, श्री विवेक सावरीकर और डॉ. संदीप भट्ट ने किया। आभार प्रदर्शन विभिन्न विभागाध्यक्षों द्वारा किया गया।
