गणपति प्रतिमाओं का विसर्जन प्रशासन की निगरानी में सम्पन्न, गंगा में विसर्जन पर रही सख्त रोक

Rashtriya Shikhar
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Ganpati Idol Immersion Conducted Under Administrative Supervision; Strict Ban Enforced on Immersion in the Ganga IMAGE CREDIT TO POLICE

हापुड़/गढ़मुक्तेश्वर (शिखर समाचार)। गणेश उत्सव के समापन अवसर पर रविवार को गढ़ क्षेत्र में गणपति बप्पा की प्रतिमाओं के विसर्जन का आयोजन धूमधाम के साथ सम्पन्न हुआ। गाजियाबाद, पिलखुवा, हापुड़ सहित आसपास के इलाकों से हजारों की संख्या में भक्तजन अपने आराध्य की प्रतिमाएं लेकर पहुंचे। परंपरागत रूप से गंगा तट पर विसर्जन की इच्छा रखने वाले कई श्रद्धालु जब ब्रजघाट पहुंचे तो उन्हें पुलिस प्रशासन ने रोक दिया। अधिकारियों ने सभी भक्तों को सूचित किया कि इस बार गंगा में प्रतिमाओं का विसर्जन पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है और यह केवल चिन्हित स्थलों पर ही किया जाएगा।

श्रद्धा और व्यवस्था का संगम: तय नहर स्थल पर गणपति विसर्जन संपन्न, प्रशासन और पुलिस ने संभाली कमान

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प्रशासन द्वारा पहले से तय किए गए नहर स्थल पर ही विसर्जन की व्यवस्था सुनिश्चित की गई थी। वहां पर नगर व ग्रामीण क्षेत्रों से आए श्रद्धालुओं ने बड़े ही श्रद्धा भाव से गणपति प्रतिमाओं को विदाई दी। पुलिस बल और प्रशासनिक टीम ने पूरे कार्यक्रम की कमान अपने हाथ में ली और सुरक्षा व्यवस्था से लेकर भक्तों की सुविधा तक हर पहलू पर नजर बनाए रखी। बड़ी संख्या में तैनात पुलिसकर्मियों ने श्रद्धालुओं को विसर्जन स्थल तक सुरक्षित पहुंचाया और किसी भी प्रकार की अव्यवस्था या असुविधा नहीं होने दी।

गंगा की गरिमा के लिए प्रशासन सख्त: श्रद्धालुओं ने नहरों में ही किया गणपति विसर्जन, दिया स्वच्छता का संदेश

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गंगा नदी के किनारे पहुंचे भक्तों को समझाते हुए अधिकारियों ने कहा कि गंगा की स्वच्छता और धार्मिक गरिमा को बनाए रखने के लिए यह कदम अनिवार्य है। मूर्तियों में प्लास्टर ऑफ पेरिस और रंग-रसायनों के कारण गंगा जल प्रदूषित होता है, इसलिए अब केवल निर्धारित नहरों में ही विसर्जन कराया जाएगा। भक्तों ने भी प्रशासन के इस फैसले का सम्मान करते हुए निर्धारित स्थान पर ही गणपति बप्पा को विदाई दी।

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पूरे आयोजन के दौरान श्रद्धालुओं में भक्ति और उल्लास का वातावरण बना रहा। ढोल-नगाड़ों की गूंज और गणपति बप्पा मोरया के जयकारों के बीच प्रतिमाओं को विसर्जित किया गया। प्रशासन ने साफ कर दिया कि आने वाले वर्षों में भी यही व्यवस्था लागू रहेगी ताकि धार्मिक परंपरा और पर्यावरण संरक्षण दोनों का संतुलन बना रहे।

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