नई दिल्ली (शिखर समाचार)
तेलंगाना भाजपा में लंबे समय से चल रही खींचतान आखिर निर्णायक मोड़ पर आ गई है। गोशामहल से भाजपा विधायक और हिंदुत्व के तेजतर्रार चेहरे राजा सिंह लोध को पार्टी से विदाई लेनी पड़ी। पार्टी नेतृत्व ने उनके इस्तीफे को तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया है।
सूत्रों के अनुसार यह फैसला तब लिया गया जब केंद्रीय मंत्री(Union Minister) और तेलंगाना भाजपा अध्यक्ष जी. किशन रेड्डी की ओर से राष्ट्रीय नेतृत्व को राजा सिंह के खिलाफ विस्तृत शिकायत भेजी गई थी। बताया जा रहा है कि रेड्डी ने प्रदेश संगठन में अनुशासनहीनता और गुटबाजी को लेकर राजा सिंह पर गंभीर सवाल उठाए थे।
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को राजा सिंह द्वारा 30 जून को भेजा गया पत्र
पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह की ओर से जारी बयान में स्पष्ट किया गया कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को राजा सिंह द्वारा 30 जून को भेजा गया पत्र प्राप्त हुआ था। इस पत्र की प्रतिलिपि किशन रेड्डी को भी भेजी गई थी, जिसमें उन्होंने प्रदेश नेतृत्व पर कार्यकर्ताओं की अनदेखी और गलत नेतृत्व चयन का आरोप लगाया था। लेकिन पार्टी ने राजा सिंह के आरोपों को निराधार और संगठन की विचारधारा के खिलाफ माना। अरुण सिंह ने पत्र के हवाले से बताया कि श्री नड्डा ने राजा सिंह के पत्र को विचारणीय नहीं मानते हुए उसे संगठन की मर्यादा और अनुशासन के प्रतिकूल पाया, जिसके आधार पर उनका इस्तीफा तुरंत प्रभाव से स्वीकार कर लिया गया।
जानकारों की मानें तो यह फैसला अचानक नहीं लिया
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राजा सिंह लोध पिछले कुछ वर्षों से भाजपा में दक्षिण भारत में उभरते हिंदुत्व के प्रतीक के रूप में देखे जा रहे थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व और राज्य इकाई के बीच उनकी विचारधारा और शैली के बीच टकराव अब असहनीय हो गया था। जानकारों की मानें तो यह फैसला अचानक नहीं लिया गया, बल्कि किशन रेड्डी द्वारा की गई विस्तृत शिकायतों के बाद पार्टी नेतृत्व ने इस मामले पर मंथन किया और अंततः संगठन की प्राथमिकताओं को सर्वोपरि रखते हुए राजा सिंह की विदाई का रास्ता साफ किया गया।
भाजपा के इस कदम को स्पष्ट संकेत माना जा रहा है
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भाजपा के इस कदम को स्पष्ट संकेत माना जा रहा है कि पार्टी अब अनुशासन और सामूहिक नेतृत्व के सिद्धांतों से किसी भी कीमत पर समझौता करने को तैयार नहीं है, चाहे नेता की छवि और जनाधार कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो। तेलंगाना की राजनीति में इस घटनाक्रम का दूरगामी असर देखने को मिल सकता है, जहां भाजपा आगामी चुनावों में नए सिरे से खुद को संगठित करने की कोशिश में जुटी है। अब यह देखना बाकी है कि राजा सिंह अपनी आगे की राजनीति किस दिशा में मोड़ते हैं अकेले दम पर या किसी नए मंच के साथ।