अपूर्व हजेला की दलीलों से फ्लैट मालिक को मिली राहत, हाईकोर्ट इलाहाबाद ने वाराणसी विकास प्राधिकरण के आदेश को किया रद्द

Rashtriya Shikhar
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Apoorv Hajela's arguments provided relief to the flat owner as the Allahabad High Court canceled the orders of the Varanasi Development Authority IMAGE CREDIT TO Allahabad High Court

इलाहाबाद (शिखर समाचार) इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा एक फ्लैट मालिक के बिना सुनवाई किए पारित एक आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने इस मामले में रिट याचिका को आंशिक रूप से मंजूर करते हुए प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि वह फ्लैट मालिक को पर्याप्त अवसर देकर कानून के अनुसार प्रक्रिया पूरी करे। यह महत्वपूर्ण सफलता याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अपूर्व हजेला के तर्कों और दलीलों के प्रभाव से मिली है। उनकी कानूनी दक्षता के चलते ही कोर्ट ने यह राहत देने का निर्णय लिया।

कोर्ट का आदेश

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हाईकोर्ट कीखंडपीठ न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता ने याचिकाकर्ता दिनेश चंद्र यादव की ओर से अपूर्व हजेला द्वारा रखे गए मुख्य तर्कों को स्वीकार करते हुए फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि यूपी नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम, 1973 की धारा 27(1) के तहत, किसी भी आदेश से पहले संबंधित व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर दिया जाना जरूरी है। चूंकि यहां फ्लैट मालिक (याचिकाकर्ता) को कोई मौका नहीं दिया गया था, इसलिए प्राधिकरण का आदेश उसके विरुद्ध लागू नहीं रहेगा।

मामले की पृष्ठभूमि

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मामला वाराणसी के प्लॉट नंबर 118 में फ्लैट 31, जानकी नगर कॉलोनी, पटिया रोड, लेन 06, कक्करमत्ता का है, जिसे याचिकाकर्ता ने वर्ष 2016 में खरीदा था। इस इमारत का नक्शा वर्ष 2014 में वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा मंजूर किया गया था। बाद में जमीन की मालकिन (रिस्पॉन्डेंट नंबर 5) और बिल्डर (रिस्पॉन्डेंट नंबर 6) के बीच हुए विवाद के चलते निर्माण में हुई कथित अनियमितताओं के आधार पर वाराणसी विकास प्राधिकरण ने 19 अगस्त 2025 का आदेश जारी किया था। याचिकाकर्ता का तर्क था कि यह आदेश बिल्डर को दी गई सुनवाई के दौरान उन्हें पक्षकार बनाए बिना पारित किया गया, जो कि अनुचित था।

अपूर्व हजेला के प्रमुख तर्क

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अपूर्व हजेला ने कोर्ट में जोर देकर कहा कि उनके मुवक्किल ने फ्लैट 2016 में खरीदा था और तब से वहां रह रहे हैं, लेकिन वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा चलाए गए समस्त कार्यवाही उनकी पीठ पीछे हुई। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि भवन निर्माण के नियमों के अनुरूप है और यदि कोई छोटी-मोटी विसंगति है भी, तो वह भी नियमों के अंतर्गत regularized (जायज) की जा सकती है, बशर्ते फ्लैट मालिकों को सुनवाई का मौका दिया जाए। उनकी इसी दलील ने कोर्ट का रुख याचिकाकर्ता के पक्ष में मोड़ दिया।

कोर्ट का निर्णय

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हाईकोर्ट ने वाराणसी विकास प्राधिकरण के आदेश को याचिकाकर्ता के संदर्भ में रद्द करते हुए मामले को वाराणसी विकास प्राधिकरण को फिर से विचार के लिए भेज दिया है। कोर्ट ने कहा कि प्राधिकरण याचिकाकर्ता को पर्याप्त अवसर देकर ही नया निर्णय ले। साथ ही, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह आदेश बिल्डर द्वारा अपील अधिकरण में दायर की गई अपील की कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं डालेगा, जिस पर स्वतंत्र रूप से फैसला होना है। इस फैसले से वाराणसी सहित अन्य शहरों के ऐसे फ्लैट मालिकों को कानूनी बल मिलेगा, जिनके हितों की अनदेखी करके नगर निकायों द्वारा निर्माण संबंधी आदेश पारित किए जाते हैं।

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