मुरादनगर (शिखर समाचार)।
देशभर में शिक्षा व्यवस्था को नई दिशा देने और शिक्षकों की समस्याओं को स्थायी समाधान दिलाने के उद्देश्य से शिक्षक कल्याण फाउंडेशन लगातार अपनी आवाज उठा रहा है। संगठन के राष्ट्रीय संयोजक जगदीश कुमार विज का कहना है कि आज जिस तरह प्रशासनिक सेवाओं के लिए आईएएस और आईपीएस कैडर मौजूद हैं, उसी प्रकार शिक्षा जगत में भी इंडियन एजुकेशन सर्विस (आईईएस) की स्थापना होनी चाहिए। उनका मानना है कि यदि यह सेवा शुरू होती है तो शिक्षक उच्चस्तरीय प्रशिक्षण और विशेषज्ञता हासिल कर पाएंगे और शिक्षा व्यवस्था को मजबूत नींव मिलेगी।
शिक्षा के लिए साझा ज़िम्मेदारी: सीमित संसाधनों में भी निजी स्कूल निभा रहे अहम भूमिका – विज
विज ने बताया कि वर्ष 2012 में शिक्षक कल्याण फाउंडेशन की नींव इसलिए रखी गई थी ताकि शिक्षकों और विद्यार्थियों दोनों की वास्तविक समस्याओं को सामने लाया जा सके और उनका निराकरण कराया जा सके। उन्होंने कहा कि आज भी बड़ी संख्या में बच्चे आर्थिक अभाव और संसाधनों की कमी के कारण विद्यालय नहीं पहुंच पाते। सरकार की ओर से शिक्षा उपलब्ध कराने की कोशिशें तो हो रही हैं, मगर अकेले सरकारी संसाधन पूरे देश की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते। ऐसे में निजी विद्यालय अपने सीमित साधनों के बावजूद शिक्षा का दायित्व निभा रहे हैं। ये विद्यालय न केवल बच्चों को पढ़ा रहे हैं बल्कि बड़ी संख्या में शिक्षकों को भी रोजगार दे रहे हैं।
विज ने मांग की कि सरकार निजी स्कूलों को सहयोग दे, ताकि वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों का वेतनमान सुधरे और विद्यार्थियों के लिए और सुविधाएं सुनिश्चित की जा सकें। उन्होंने यह भी कहा कि गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों को शिक्षा से वंचित न रहना पड़े, इसके लिए विशेष योजनाएं लागू की जानी चाहिए।
शिक्षकों की सशक्त भूमिका पर जोर: विज बोले—नीति नहीं, ज़मीन से जुड़ा सुधार ही बदलेगा शिक्षा का भविष्य
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उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि शिक्षकों को चिकित्सा सुविधा और अन्य सरकारी सुविधाओं का लाभ भी मिलना चाहिए, क्योंकि शिक्षा का भार उठाने वाले शिक्षकों का जीवन स्तर सुदृढ़ होना उतना ही जरूरी है जितना विद्यार्थियों की पढ़ाई। विज का कहना है कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार केवल नीतिगत बदलाव से नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर शिक्षकों की स्थिति मजबूत करने से ही संभव है।
उन्होंने बताया कि अब तक संगठन की ओर से देश के विभिन्न हिस्सों में कई सेमिनार आयोजित किए जा चुके हैं और बार-बार सरकार को ज्ञापन देकर इन मांगों से अवगत कराया गया है। उनका कहना है कि जब तक शिक्षा सेवा को एक स्वतंत्र और राष्ट्रीय स्वरूप नहीं दिया जाता, तब तक शिक्षकों की असली क्षमता और छात्रों की प्रतिभा का पूरा उपयोग नहीं हो पाएगा।