नई दिल्ली (शिखर समाचार)
वृंदावन की आध्यात्मिक विरासत और सांस्कृतिक अस्मिता को लेकर गूंज उठी आवाज अब सर्वोच्च न्यायालय की चौखट तक पहुँच चुकी है। श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर निर्माण परियोजना के खिलाफ नारायणी सेना और करीब सौ से अधिक ब्रजवासियों ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर, इस विकास के नाम पर हो रहे विनाश के विरुद्ध सशक्त कानूनी चुनौती पेश की है।
डॉ. ए पी सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में ब्रजधाम की धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा की जोरदार पैरवी की
वरिष्ठ अधिवक्ता एवं नारायणी सेना के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. ए पी सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से पक्ष रखते हुए संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संस्थानों के स्वायत्त अधिकारों की रक्षा की जोरदार पैरवी की। डॉ. सिंह ने साफ कहा कि यह केवल ईंट-पत्थरों का सवाल नहीं, बल्कि ब्रजधाम की उस आध्यात्मिक चेतना का प्रश्न है, जो सदियों से श्रीकृष्ण की लीलाओं की साक्षी बनी इन कुंज गलियों में बसती रही है।
राधा कृष्ण भवन, ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर परिसर में आयोजित पत्रकार वार्ता में डॉ. ए पी सिंह ने बताया कि कॉरिडोर निर्माण की प्रक्रिया में जिस प्रकार ब्रजवासियों को उनकी पैतृक गलियों और पुश्तैनी घरों से जबरन बेदखल किया जा रहा है, वह संवैधानिक मर्यादाओं और न्याय की आत्मा के विरुद्ध है। उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर प्रतिपादित Essential Religious Practices Doctrine का खुला उल्लंघन बताया।
ब्रजधाम की पावन गलियों की रक्षा के लिए जनहित याचिका, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों ने कॉरिडोर निर्माण पर रोक की मांग की
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इस जनहित याचिका में याचिकाकर्ता पंडित सोहनलाल मिश्र, नारायणी सेना के आचार्य रामानुज, प्रांत प्रमुख प्रमोद दीक्षित, जिला प्रभारी दीपक पाराशर सहित अनेक सामाजिक और धार्मिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं। इनका कहना है कि श्रीधाम वृंदावन की ये गलियाँ सिर्फ रास्ते नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण के नन्हे पगचिन्हों की स्मृति हैं, जिनमें सदियों से ब्रजवासी सेवा, भक्ति और सनातन संस्कृति की शुचिता को जीवंत रखते आए हैं।
पत्रकार वार्ता में रुक्मिणी रमण गोस्वामी, एडवोकेट गौतम जी, नारी शक्ति प्रमुख शीतल आचार्य, महासचिव डॉ. जमुना शर्मा, धर्मवीर सिंह समेत अनेक वक्ताओं ने एकमत से मांग की कि कॉरिडोर निर्माण के नाम पर ब्रज की पहचान मिटाने का षड्यंत्र तत्काल रोका जाए। उन्होंने राज्य सरकार को चेताया कि विकास की परिभाषा से पहले उसे ब्रज की आत्मा को समझना होगा।
ब्रजवासियों की वेदना और मांग: सांस्कृतिक संरक्षण के लिए कानूनी व जनआंदोलन की तैयारी
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वक्ताओं ने मांग रखी कि सप्तदेवालों के दर्शन को सुगम बनाने हेतु वैकल्पिक योजनाएँ बनाई जाएं जैसे कि पक्के घाटों का निर्माण, तुलसी वन, नवग्रह वाटिका, हर की पैड़ी की तर्ज पर कृष्ण पौड़ी का निर्माण, जिससे सांस्कृतिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखते हुए श्रद्धालुओं की सुविधा भी सुनिश्चित हो सके।
यह पुनर्विचार याचिका केवल कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि ब्रजवासियों की उस वेदना की आवाज है जो अपनी मिट्टी, स्मृति और श्रद्धा की रक्षा के लिए अब सुप्रीम कोर्ट की शरण में है। नारायणी सेना और ब्रजधाम के रक्षक अब यह स्पष्ट कर चुके हैं कि यदि आवश्यकता पड़ी तो कानूनी लड़ाई के साथ जनआंदोलन की राह भी अपनाई जाएगी। जनभावनाओं और धार्मिक स्वतंत्रता की इस लड़ाई में अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के आगामी निर्णय पर टिक गई हैं, जहां तय होगा कि विकास की दौड़ में ब्रज की आत्मा सुरक्षित रहेगी या फिर ये गलियाँ इतिहास में गुम हो जाएंगी।