नई दिल्ली (शिखर समाचार)
कर्नाटक कांग्रेस की भीतरू तकरार अब सार्वजनिक मंच पर गूंजने लगी है। मुख्यमंत्री सिद्दारमैया जो अपने डिप्टी डी के शिवकुमार की शिकायत लेकर दिल्ली पहुंचे थे, उन्हें पार्टी के शीर्ष नेता राहुल गांधी से मिलने का वक्त तक नहीं दिया गया। सूत्रों के हवाले से सामने आई इस जानकारी ने कांग्रेस के अंदर चल रही सत्ता खींचतान और नेतृत्व को लेकर गहरी असहमति को और उजागर कर दिया है।
भारतीय जनता पार्टी ने इस घटनाक्रम को कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के अपमान की एक और कड़ी बताया
भारतीय जनता पार्टी ने इस घटनाक्रम को कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के अपमान की एक और कड़ी बताया है। पार्टी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर दावा किया कि मुख्यमंत्री सिद्दारमैया राहुल गांधी से मुलाकात का अनुरोध लेकर दिल्ली पहुंचे थे, लेकिन उन्हें न तो समय मिला और न ही पार्टी नेतृत्व की ओर से कोई प्रतिक्रिया। अंततः उन्हें चुपचाप बेंगलुरु लौटना पड़ा।
मालवीय ने कांग्रेस के इतिहास की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह पहला अवसर नहीं है जब कर्नाटक के किसी वरिष्ठ नेता के साथ ऐसा व्यवहार हुआ हो। उन्होंने 1990 की उस घटना को याद दिलाया जब बीमार मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नजरअंदाज कर दिया था। उनके अनुसार उसी क्षण से राज्य में कांग्रेस का पतन शुरू हो गया था। भाजपा नेता ने सिद्दारमैया की स्थिति को कमजोर मुख्यमंत्री की संज्ञा देते हुए कहा कि वे अब अपने ही डिप्टी डी के शिवकुमार की साजिशों और दबाव के आगे बेबस नजर आ रहे हैं। शिवकुमार जो लंबे समय से मुख्यमंत्री पद की ओर देख रहे हैं, अब पार्टी के भीतर अपने समर्थकों के साथ नई गोटियाँ बिछा रहे हैं।
कांग्रेस के इतिहास की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह पहला अवसर नहीं
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हालांकि कांग्रेस की ओर से इस मसले पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। न ही सिद्दारमैया के कार्यालय की तरफ से इस मुलाकात की असफलता पर कोई स्पष्टीकरण दिया गया है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि भाजपा इस तरह की अफवाहें फैलाकर राज्य सरकार को अस्थिर करने की साज़िश रच रही है।
लेकिन कांग्रेस के भीतर उठ रही असंतोष की आवाजें और दो वरिष्ठ नेताओं के बीच का स्पष्ट विभाजन इस बात की ओर संकेत करता है कि सब कुछ ठीक नहीं है। राहुल गांधी की चुप्पी और शीर्ष नेतृत्व की अनदेखी न केवल सिद्दारमैया की स्थिति को कमजोर कर रही है, बल्कि पार्टी की एकजुटता पर भी सवाल खड़े कर रही है। कर्नाटक में जारी यह राजनीतिक गतिरोध आने वाले महीनों में और गहराता नजर आ सकता है, खासकर जब राज्य के भीतर पार्टी का एक धड़ा सत्ता परिवर्तन की संभावनाओं को हवा देने में जुटा है।